अप्रैल से जुलाई 2025 तक चली भीषण भारत-पाकिस्तान हीटवेव आखिरकार अब थम गई है। मौसम विभाग के अनुसार, यह इस क्षेत्र में दर्ज सबसे लंबे और खतरनाक हीटवेव्स में से एक थी। राजस्थान के श्रीगंगानगर में 12 जून को तापमान 48°C तक पहुंच गया, जो इस साल का सबसे उच्चतम दर्ज किया गया तापमान रहा।
🔥 प्रमुख प्रभाव
- मृत्यु और स्वास्थ्य संकट: अप्रैल में भारत में 195 और मई में 260 लोगों की जान हीटवेव के कारण चली गई। लोगों में हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन और सांस की समस्याएं तेजी से बढ़ीं।
- कृषि पर असर: अत्यधिक गर्मी के कारण फसलें समय से पहले सूख गईं। किसान खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में भारी नुकसान झेल रहे हैं।
- बिजली और पानी की कमी: बिजली की मांग कई गुना बढ़ी, जिससे ग्रिड पर दबाव आया और कई इलाकों में लोड शेडिंग हुई। साथ ही, जल संकट ने भी लोगों की परेशानियां बढ़ा दीं।
- ग्रामीण और गरीब वर्ग सबसे अधिक प्रभावित: शहरी गरीब, खेतिहर मजदूर, वृद्ध और बच्चे इस हीटवेव के सबसे संवेदनशील वर्गों में रहे।
🧪 वैज्ञानिक दृष्टिकोण
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, यह हीटवेव सामान्य से बहुत पहले शुरू हुई और तीन महीने तक चली, जो एक असामान्य पैटर्न है।
एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, वैसी “नमीभरी हीटवेव्स” (oppressive heat waves) जो अत्यधिक घातक होती हैं, 2070 तक 5 से 8 गुना बढ़ सकती हैं, अगर तापमान को 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर न रोका गया ।
🏥 सरकारी प्रयास और प्रतिक्रिया
- हीट अलर्ट और स्वास्थ्य सलाह जारी की गई।
- अस्पतालों को अलर्ट मोड पर रखा गया और “कूलिंग सेंटर” खोले गए।
- कुछ राज्यों में स्कूलों में छुट्टियां घोषित की गईं और किसानों को सूखे से राहत पैकेज देने की बात चल रही है।
- सरकारें अब दीर्घकालिक समाधान जैसे हरित नगरीय योजनाएं, ऊर्जा-संवेदनशील भवन और जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा देने की तैयारी में हैं।
🔮 आगे की राह
- पूर्व चेतावनी प्रणाली को मजबूत करना ज़रूरी है ताकि समय रहते लोगों को जानकारी मिले।
- हीट रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना होगा – जैसे हरे क्षेत्र, शीतल आवास, पानी की बेहतर आपूर्ति।
- जन-जागरूकता अभियान ज़रूरी हैं ताकि लोग खुद को सुरक्षित रख सकें।
- नीतिगत परिवर्तन जैसे श्रमिकों के लिए गर्मी में कार्य समय सीमित करना आवश्यक होगा।
निष्कर्ष
2025 की यह हीटवेव केवल एक मौसमीय घटना नहीं थी, बल्कि एक जलवायु चेतावनी थी। भारत और पाकिस्तान को अब जलवायु संकट के अनुकूल बनने की आवश्यकता है। समय रहते उठाए गए कदम ही भविष्य की तबाही को टाल सकते हैं।
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