Premanand JI Maharaj परिचय
प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज (जन्म: 30 मार्च 1969) एक आधुनिक भारतीय संत एवं प्रवचनकर्ता हैं, जिनका जन्म अनिरुद्ध कुमार पांडेय के रूप में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक में हुआ। वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय से सम्बद्ध हैं और वृंदावन स्थित “श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट” के संस्थापक के रूप में भी विख्यात हैं।
1. प्रारंभिक जीवन
- जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि: अनिरुद्ध कुमार पांडेय का जन्म 30 मार्च 1969 को रामादेवी और शंभू पांडेय के घर हुआ।
- सन्यास की ओर अग्रसर: मात्र 13 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने गृह त्याग कर सन्यासी जीवन अपनाया और “आनंदस्वरूप ब्रह्मचारी” के नाम से प्रसिद्ध हुए।
2. आध्यात्मिक यात्रा
- ब्रह्मचर्य एवं साधना: प्रारंभ में काशी के पवित्र घाटों पर गंगाजल में साधना की, जहां उन्होंने जप-अभ्यास के माध्यम से अंतर्मुखी साधना का मार्ग अपनाया।
- दीक्षा एवं दीक्षित गुरु: वृंदावन में रासलीला का अनुभव प्राप्त करने के पश्चात् वे राधा वल्लभ सम्प्रदाय में दीक्षित हुए। उनके मुख्य गुरु श्री हित गौरांगी शरण महाराज हैं, जिन्होंने उन्हें निज मंत्र तथा ‘नित्य विहार रस’ की दीक्षा दी।
3. आश्रम और सामाजिक सेवा
- श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट: वर्ष 2016 में स्थापित इस ट्रस्ट द्वारा निश्छल भक्ति के साथ-साथ:
- निशुल्क भोजन और स्वास्थ्य शिविर आयोजित होते हैं।
- वृद्धाश्रम एवं अनाथालय की व्यवस्था की जाती है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा एवं कल्याण के कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
4. शिक्षाएँ और दर्शन
- भक्ति और चरित्र निर्माण: प्रेमानंद महाराज का मानना है कि सच्ची भक्ति के साथ-साथ संयमित जीवन–शैली (ब्रह्मचर्य) एवं संतोषी चरित्र का निर्माण आत्मिक उन्नति के लिए अनिवार्य है।
- गुरु की महत्ता: वे बारंबार कहते हैं कि अध्यात्मिक उन्नति में गुरु का मार्गदर्शन सर्वोपरि होता है।
5. प्रकाशित कृतियाँ
Premanand JI Maharaj द्वारा अब तक निम्नलिखित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं:
- ब्रह्मचर्य (Generic, 2019)
- एकान्तिक वार्तालाप (Generic, 2019)
- हित सदगुरुदेव के वचनामृत (श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट, 2020)
- अष्टयाम सेवा पद्धति (श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट, 2020)
- Spiritual Awakening (Vol. 1) (अंग्रेज़ी, 2024)
6. निष्कर्ष
प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज की साधना-यात्रा साधारण जीवन को अलौकिकता से जोड़ती है। उनका सन्देश—गुरु भक्ति, ब्रह्मचर्य, चरित्र निर्माण—आधुनिक तीव्र गति के जीवन में भी शांति, संतुलन और आत्मिक बोध प्रदान करता है। सामाजिक सेवा के माध्यम से उन्होंने यह भी दर्शाया कि आध्यात्म केवल अंतर्मुखी साधना नहीं, बल्कि समाज की भलाई के लिए समर्पण भी है।
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